सनातन
परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के
बाद एक और अत्यंत
महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है जिसे कान्हा
की छठी पूजा कहा जाता है। यह जन्माष्टमी के
छह दिन बाद मनाई जाती है और भक्त
इस दिन का उतना ही
उल्लास से इंतजार करते
हैं। इस पावन अवसर
पर घरों और मंदिरों को
फिर से सजाया जाता
है। सुबह से लेकर शाम
तक भजन, कीर्तन और पूजा-अर्चना
की जाती है, और भक्त अपने
आराध्य बाल गोपाल के लिए प्रेम
और भक्ति से यह पर्व
मनाते हैं।
इस
दिन भोग के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाए
जाते हैं, जिनमें कढ़ी, चावल, पंचामृत आदि शामिल होते हैं। फल, फूल, मक्खन, मिश्री, तुलसी पत्ते और अन्य शुभ
वस्तुएँ भगवान को अर्पित की
जाती हैं। यह पर्व भक्ति
और आनंद से भरा होता
है और कृष्ण भक्तों
में विशेष उल्लास होता है।
जिस
प्रकार किसी भी नवजात शिशु
की छठी परंपरागत रूप से जन्म के
छह दिन बाद मनाई जाती है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की छठी भी
उसी नियम से की जाती
है। धर्म विशेषज्ञों के अनुसार, जिन्होंने
15 अगस्त 2025 को जन्माष्टमी मनाई
है, वे 21 अगस्त 2025 को कान्हा की
छठी मनाएंगे। जो भक्त उदया
तिथि मानकर 16 अगस्त 2025 को जन्माष्टमी मनाएंगे,
वे 22 अगस्त 2025 को कान्हा की
छठी करेंगे। पूजा का समय भक्त
अपनी श्रद्धा के अनुसार तय
करते हैं—कुछ इसे दोपहर में करते हैं, तो कुछ शाम
के समय। यदि आप दोपहर में
पूजा कर रहे हैं,
तो अभिजीत मुहूर्त यानी 11:58 बजे से 12:50 बजे तक का समय
अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा
आरंभ करने से पहले शरीर
और मन की शुद्धि
कर लेनी चाहिए और सभी पूजन-सामग्री एकत्र कर लेनी चाहिए।
जैसे किसी नवजात शिशु को छठी वाले
दिन स्नान कराया जाता है, वैसे ही भगवान कृष्ण
को भी पहले पंचामृत
से स्नान करवाया जाता है और फिर
गंगाजल से स्नान कराया
जाता है। इसके बाद साफ वस्त्र से पोंछकर उन्हें
नए वस्त्र और आभूषण पहनाए
जाते हैं। फिर sandalwood (चंदन), केसर, हल्दी, फल, फूल, धूप और दीप अर्पित
किए जाते हैं। कान्हा की छठी में
उनकी प्रिय वस्तुएँ जैसे बाँसुरी, माखन-मिश्री और मोरपंख अवश्य
चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद उन्हें उस नाम से
पुकारा जाता है जिससे भक्त
उन्हें पूरे वर्ष पूजा करते हैं। पूजा के अंत में
आरती की जाती है,
प्रसाद सभी में बाँटा जाता है और स्वयं
भी ग्रहण किया जाता है।

धार्मिक
मतों के अनुसार, सनातन
परंपरा में छठी देवी यानी शष्ठी माता की पूजा का
विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि शिशु
की छठी पूजा से वह हर
प्रकार की बाधाओं से
सुरक्षित रहता है। इसी विश्वास के साथ भक्त
हर वर्ष कृष्ण जन्म के बाद उनकी
छठी भी बड़े आदर,
प्रेम और श्रद्धा से
मनाते हैं और बाल गोपाल
की कृपा तथा सुरक्षा की कामना करते
हैं।
अधिक जानकारी
के लिए अपने पंडित जी से बात करिए.
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